कक्षा 10 इतिहास पाठ 1 सरस्वती-सिंधु सभ्यता Notes & Important Question Answer
Chapter Notes -
सरस्वती और सिंधु नदियों के उपजाऊ मैदानों में भारत की पहली नगरीय सभ्यता का उदय हुआ। इस सभ्यता के पुरास्थल सरस्वती व सिंधु नदियों के किनारे होने के कारण इसे ‘सरस्वती-सिंधु सभ्यता’ या‘सिंधु सभ्यता’ या ‘हड़प्पा सभ्यता’ के नाम से जानते हैं।
सर्वप्रथम 1921 ईस्वी में दयाराम साहनी ने पंजाब प्रांत में हड़प्पा और 1922 ईस्वी में राखल दास बनर्जी ने सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो ना हो पूरा स्थलों का उत्खनन किया।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का विस्तार -
यह सभ्यता पूर्व में आलमगीरपुर ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश ) से पश्चिम में सुत्कागेनडोर ( बलूचिस्तान ) तक और उत्तर में मांडा ( जम्मू ) से लेकर दक्षिण में दायमाबाद ( महाराष्ट्र ) तक था।इस सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है।
जिसमें पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर है।
सर्वप्रथम 1921 ईस्वी में दयाराम साहनी ने पंजाब प्रांत में हड़प्पा और 1922 ईस्वी में राखल दास बनर्जी ने सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो ना हो पूरा स्थलों का उत्खनन किया।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का विस्तार -
यह सभ्यता पूर्व में आलमगीरपुर ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश ) से पश्चिम में सुत्कागेनडोर ( बलूचिस्तान ) तक और उत्तर में मांडा ( जम्मू ) से लेकर दक्षिण में दायमाबाद ( महाराष्ट्र ) तक था।इस सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है।
जिसमें पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर है।
इस सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान, गुजरात और पाकिस्तान में बलूचिस्तान, सिंध आदि प्रांतों में मिलते हैं। जिनमें राखीगढ़ी, बनवाली ( हरियाणा ), मोहनजोदड़ो ( सिंधु ), हड़प्पा ( पंजाब ), धोलावीरा ( गुजरात ) और कालीबंगा ( राजस्थान ) महत्वपूर्ण नगर थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का कालक्रम -
इस सभ्यता की शुरुआत लगभग 7500- 7000 ईसवी पूर्व सरस्वती नदी के तट पर हुई। इस सभ्यता में 3200 ईसवी पूर्व में नगर योजना के लक्षण, लेखन कला मुहावरों का विकास और नापतोल की पद्धति का विकास हुआ। 1900 ईसवी पूर्व तक आते-आते नगरीय सभ्यता का बदलाव ग्रामीण संस्कृति में होना शुरू हो गया। 1300 ईसवी से पूर्व इस सभ्यता का पतन हो गया।
कालक्रम की दृष्टि से सरस्वती-सिंधु सभ्यता को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है।प्रारंभिक काल ( >4000-2600 ई. पू. )
नगरीय काल ( 2600-1900 ई. पू. )
उत्तर काल ( 1900-1300 ई. पू. )
सरस्वती-सिंधु सभ्यता की नगर योजना -
इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था। नगर के आवास क्षेत्र में सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अंदर प्रशासनिक, सार्वजनिक भवन और अन्नागार स्थित थे।
इस सभ्यता की सड़कें नजरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर तथा गलियां औसतन 3 मीटर चौड़ी थी। सड़के कच्ची होती थी लेकिन साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़कों के किनारे कूड़ेदान भी रखे जाते थे।
घरों की नालियां सड़क के किनारे बड़े नाले में गिरती थी। फिर नालों के माध्यम से पानी नगर से बाहर जाता था। नालिया पक्की ईंटों की बनाई जाती थी और इन्हें ऊपर से ढक दिया जाता था।
इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां रोशनदान फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं। सामुदायिक भवनों में सभा भवन, अन्नागार और स्नानागार मिलते हैं। भवनों को बनाने में 1:2:3 और 1:2:4 अनुपात की ईंटों का उपयोग किया गया है।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता की कला -
इस सभ्यता में धातु और मिट्टी की मूर्तियों का उल्लेख किया जाता है। इसके अतिरिक्त मोहरे, मनके और मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति 19 सेंटीमीटर लंबी है जो बहुत प्रसिद्ध है। मोहनजोदड़ो से विश्वविख्यात धातु की नर्तकी की मूर्ति भी मिली है। पुरुषों, स्त्रियों व पशु पक्षियों की भी मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
पशु और पक्षियों में बैल, भेड़, बकरी, कुत्ता, हाथी, सूअर, मोर, बत्तख, तोता और कबूतर मिलते हैं।
इस सभ्यता में मुहरें मुख्यतः चौकोर या आयताकार हैं। जिन पर सूक्ष्म उपकरणों से पशु-पक्षियों, देवी देवताओं एवं लिपि को अंकित किया गया है। सेलखड़ी, गोमेद, शंख, हाथी दांत, सोने, चांदी और तांबे के आभूषण मिलते हैं।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का राजनीतिक जीवन -
मेसोपोटामिया सभ्यता में नगर राज्यों का संचालन पुरोहित शासकों के हाथ में था और संपूर्ण भूमि मंदिरों की संपत्ति होती थी। विद्वानों का मानना है कि, “सरस्वती-सिंधु सभ्यता के प्रशासन का संचालन हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक दो राजधानियों से होता था।” इस सभ्यता के राजनीतिक जीवन के अधीक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का सामाजिक जीवन -
इस सभ्यता का समाज अनेक वर्गों में विभाजित रहा होगा। नगरों को दुर्ग क्षेत्र और आवास क्षेत्र में विभाजित किया जाता था। नगर दुर्गों में संपन्न व्यक्ति या शासक वर्ग निवास करता था। धोलावीरा के दुर्ग क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया था। दुर्ग क्षेत्रों में सुरक्षा और विशेष सुविधाओं का ध्यान रखा जाता था।
आवासीय क्षेत्र में व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, शिल्पी और मजदूर रहते थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में आवासीय क्षेत्र रक्षा-प्राचीर से भी घिरे हुए नहीं थे। किंतु कालीबंगा, लोथल, बनावली और धोलावीरा में किलेबंदी के साक्ष्य मिले हैं।
इस सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे।
इस सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन जौ, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, दूध, मांस ( मछली, भेड़, बकरी, सूअर का) था। खुदाई में मिले चूल्हे सिलबट्टे आदि से भोजन पकाने और पीसने के प्रमाण भी मिलते हैं। भोजन के लिए थाली गिलास कटोरा और लोटा आदि का प्रयोग किया जाता है।
उस समय पुरुष और स्त्रियां दोनों आभूषण पहना करते थे। आभूषणों में मुख्य रूप से हार, भुजबंद, कंगन, अंगूठी पहनी जाती थी। धनी लोग सोने-चांदी, अर्ध-कीमती पत्थर, हाथी दांत आदि के जबकि निर्धन लोग पक्की मिट्टी, हड्डी और पत्थर के आभूषण पहनते थे।
वे मुख्य रूप से हाथी दांत के कंधे और तांबे के शिशे का प्रयोग करते थे। स्त्रियां काजल, सूरमा, सिंदूर भी लगाती थी। शतरंज का खेल और नृत्य उनके मनोरंजन के साधन थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का आर्थिक जीवन -
सरस्वती-सिंधु का क्षेत्र बहुत अधिक उपजाऊ था। यहां के लोग मुख्य रूप से गेहूं, जौ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों,कपास, तिल आदि की खेती करते थे।
विशिष्ट प्रकार की फसलें, फसल बोने की विधि, कृषि के उपकरण, सिंचाई व्यवस्था आदि उस समय के कृषि विकास को दर्शाती है।
मेहरगढ़ से प्राप्त पत्थर की दरांति, कालीबंगा से प्राप्त जुते हुए खेत और बनावली से प्राप्त हल का नमूना इसके सबूत हैं।
इस सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाले जाते थे। इनका प्रयोग दूध, मांस, खाल और उन के लिए होता था। इस सभ्यता के लोगों ने घोड़े और ऊंट को भी पालतू बनाया। इसके अलावा जंगली सूअर, चिंकारा, हिरण और नीलगाय आदि जंगली जानवरों के भी प्रमाण मिले हैं।
यह सभ्यता वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करती थी। इसके पास नापतोल की प्रणाली, मुद्राएं, यातायात के साधन मौजूद थे। स्थल मार्ग से व्यापार बैल गाड़ियों के द्वारा और समुद्री मार्ग में व्यापार नाव के द्वारा किया जाता था।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का धार्मिक जीवन -
इस सभ्यता के लोग मातृ शक्ति की पूजा करते थे। जिसके साक्ष्य नारी की मिट्टी की मूर्तियों और मोहरों पर नारी आकृतियों के अंकन से मिलते हैं। इन मूर्तियों पर धुएं के निशान भी मिले हैं।
इस सभ्यता के लोग पशुपति शिव की उपासना भी किया करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर सींग वाले त्रिमुखी पुरुष को सिंहासन पर योग मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। जिसके दाहिने तरफ हाथी और बाघ, बाई तरफ गैंडा और भैंसा दिखाया गया है। सिहासन के नीचे दो हिरण खड़े दिखाए गए हैं। इस मूर्ति को पशुपति शिव की मूर्ति माना जाता है। इस सभ्यता के लोगों द्वारा शिवलिंग की पूजा भी की जाती थी।
इस सभ्यता के लोग मुख्य रूप से एक सींग वाले पशु, बैल, सांप, पीपल की पूजा भी करते थे।
इस सभ्यता में योग का महत्व भी रहा होगा। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर में एक पुरुष की आकृति पद्मासन मुद्रा में दिखाई गई है और एक अन्य मुहर पर योग पुरुष की आधी खुली आंखें नासिका के अग्रभाग पर केंद्रित दिखाई गई हैं। इस सभ्यता में मुहरों पर स्वास्तिक चिन्ह भी मिलता है।
इस सभ्यता में अंतिम संस्कार की तीन विधियां पर चली थी।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का कालक्रम -
इस सभ्यता की शुरुआत लगभग 7500- 7000 ईसवी पूर्व सरस्वती नदी के तट पर हुई। इस सभ्यता में 3200 ईसवी पूर्व में नगर योजना के लक्षण, लेखन कला मुहावरों का विकास और नापतोल की पद्धति का विकास हुआ। 1900 ईसवी पूर्व तक आते-आते नगरीय सभ्यता का बदलाव ग्रामीण संस्कृति में होना शुरू हो गया। 1300 ईसवी से पूर्व इस सभ्यता का पतन हो गया।
कालक्रम की दृष्टि से सरस्वती-सिंधु सभ्यता को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है।प्रारंभिक काल ( >4000-2600 ई. पू. )
नगरीय काल ( 2600-1900 ई. पू. )
उत्तर काल ( 1900-1300 ई. पू. )
सरस्वती-सिंधु सभ्यता की नगर योजना -
इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था। नगर के आवास क्षेत्र में सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अंदर प्रशासनिक, सार्वजनिक भवन और अन्नागार स्थित थे।
इस सभ्यता की सड़कें नजरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर तथा गलियां औसतन 3 मीटर चौड़ी थी। सड़के कच्ची होती थी लेकिन साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़कों के किनारे कूड़ेदान भी रखे जाते थे।
घरों की नालियां सड़क के किनारे बड़े नाले में गिरती थी। फिर नालों के माध्यम से पानी नगर से बाहर जाता था। नालिया पक्की ईंटों की बनाई जाती थी और इन्हें ऊपर से ढक दिया जाता था।
इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां रोशनदान फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं। सामुदायिक भवनों में सभा भवन, अन्नागार और स्नानागार मिलते हैं। भवनों को बनाने में 1:2:3 और 1:2:4 अनुपात की ईंटों का उपयोग किया गया है।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता की कला -
इस सभ्यता में धातु और मिट्टी की मूर्तियों का उल्लेख किया जाता है। इसके अतिरिक्त मोहरे, मनके और मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति 19 सेंटीमीटर लंबी है जो बहुत प्रसिद्ध है। मोहनजोदड़ो से विश्वविख्यात धातु की नर्तकी की मूर्ति भी मिली है। पुरुषों, स्त्रियों व पशु पक्षियों की भी मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
पशु और पक्षियों में बैल, भेड़, बकरी, कुत्ता, हाथी, सूअर, मोर, बत्तख, तोता और कबूतर मिलते हैं।
इस सभ्यता में मुहरें मुख्यतः चौकोर या आयताकार हैं। जिन पर सूक्ष्म उपकरणों से पशु-पक्षियों, देवी देवताओं एवं लिपि को अंकित किया गया है। सेलखड़ी, गोमेद, शंख, हाथी दांत, सोने, चांदी और तांबे के आभूषण मिलते हैं।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का राजनीतिक जीवन -
मेसोपोटामिया सभ्यता में नगर राज्यों का संचालन पुरोहित शासकों के हाथ में था और संपूर्ण भूमि मंदिरों की संपत्ति होती थी। विद्वानों का मानना है कि, “सरस्वती-सिंधु सभ्यता के प्रशासन का संचालन हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक दो राजधानियों से होता था।” इस सभ्यता के राजनीतिक जीवन के अधीक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का सामाजिक जीवन -
इस सभ्यता का समाज अनेक वर्गों में विभाजित रहा होगा। नगरों को दुर्ग क्षेत्र और आवास क्षेत्र में विभाजित किया जाता था। नगर दुर्गों में संपन्न व्यक्ति या शासक वर्ग निवास करता था। धोलावीरा के दुर्ग क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया था। दुर्ग क्षेत्रों में सुरक्षा और विशेष सुविधाओं का ध्यान रखा जाता था।
आवासीय क्षेत्र में व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, शिल्पी और मजदूर रहते थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में आवासीय क्षेत्र रक्षा-प्राचीर से भी घिरे हुए नहीं थे। किंतु कालीबंगा, लोथल, बनावली और धोलावीरा में किलेबंदी के साक्ष्य मिले हैं।
इस सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे।
इस सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन जौ, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, दूध, मांस ( मछली, भेड़, बकरी, सूअर का) था। खुदाई में मिले चूल्हे सिलबट्टे आदि से भोजन पकाने और पीसने के प्रमाण भी मिलते हैं। भोजन के लिए थाली गिलास कटोरा और लोटा आदि का प्रयोग किया जाता है।
उस समय पुरुष और स्त्रियां दोनों आभूषण पहना करते थे। आभूषणों में मुख्य रूप से हार, भुजबंद, कंगन, अंगूठी पहनी जाती थी। धनी लोग सोने-चांदी, अर्ध-कीमती पत्थर, हाथी दांत आदि के जबकि निर्धन लोग पक्की मिट्टी, हड्डी और पत्थर के आभूषण पहनते थे।
वे मुख्य रूप से हाथी दांत के कंधे और तांबे के शिशे का प्रयोग करते थे। स्त्रियां काजल, सूरमा, सिंदूर भी लगाती थी। शतरंज का खेल और नृत्य उनके मनोरंजन के साधन थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का आर्थिक जीवन -
सरस्वती-सिंधु का क्षेत्र बहुत अधिक उपजाऊ था। यहां के लोग मुख्य रूप से गेहूं, जौ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों,कपास, तिल आदि की खेती करते थे।
विशिष्ट प्रकार की फसलें, फसल बोने की विधि, कृषि के उपकरण, सिंचाई व्यवस्था आदि उस समय के कृषि विकास को दर्शाती है।
मेहरगढ़ से प्राप्त पत्थर की दरांति, कालीबंगा से प्राप्त जुते हुए खेत और बनावली से प्राप्त हल का नमूना इसके सबूत हैं।
इस सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाले जाते थे। इनका प्रयोग दूध, मांस, खाल और उन के लिए होता था। इस सभ्यता के लोगों ने घोड़े और ऊंट को भी पालतू बनाया। इसके अलावा जंगली सूअर, चिंकारा, हिरण और नीलगाय आदि जंगली जानवरों के भी प्रमाण मिले हैं।
यह सभ्यता वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करती थी। इसके पास नापतोल की प्रणाली, मुद्राएं, यातायात के साधन मौजूद थे। स्थल मार्ग से व्यापार बैल गाड़ियों के द्वारा और समुद्री मार्ग में व्यापार नाव के द्वारा किया जाता था।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का धार्मिक जीवन -
इस सभ्यता के लोग मातृ शक्ति की पूजा करते थे। जिसके साक्ष्य नारी की मिट्टी की मूर्तियों और मोहरों पर नारी आकृतियों के अंकन से मिलते हैं। इन मूर्तियों पर धुएं के निशान भी मिले हैं।
इस सभ्यता के लोग पशुपति शिव की उपासना भी किया करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर सींग वाले त्रिमुखी पुरुष को सिंहासन पर योग मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। जिसके दाहिने तरफ हाथी और बाघ, बाई तरफ गैंडा और भैंसा दिखाया गया है। सिहासन के नीचे दो हिरण खड़े दिखाए गए हैं। इस मूर्ति को पशुपति शिव की मूर्ति माना जाता है। इस सभ्यता के लोगों द्वारा शिवलिंग की पूजा भी की जाती थी।
इस सभ्यता के लोग मुख्य रूप से एक सींग वाले पशु, बैल, सांप, पीपल की पूजा भी करते थे।
इस सभ्यता में योग का महत्व भी रहा होगा। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर में एक पुरुष की आकृति पद्मासन मुद्रा में दिखाई गई है और एक अन्य मुहर पर योग पुरुष की आधी खुली आंखें नासिका के अग्रभाग पर केंद्रित दिखाई गई हैं। इस सभ्यता में मुहरों पर स्वास्तिक चिन्ह भी मिलता है।
इस सभ्यता में अंतिम संस्कार की तीन विधियां पर चली थी।
- पूर्ण समाधिकरण
- आंशिक समाधिकरण
- दाह संस्कार
समाधि क्षेत्र नगरों से बाहर होते थे। शवों का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण दिशा की ओर होते थे। कंकालों के साथ मिट्टी के बर्तन, आभूषण, उपकरण आदि रखे जाते थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता के पतन के कारण -
इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। अभी तक कोई पक्का साक्ष्य नहीं मिला है जो यह दर्शाता होगी इस सभ्यता का पतन कैसे हुआ। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-
- आंशिक समाधिकरण
- दाह संस्कार
समाधि क्षेत्र नगरों से बाहर होते थे। शवों का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण दिशा की ओर होते थे। कंकालों के साथ मिट्टी के बर्तन, आभूषण, उपकरण आदि रखे जाते थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता के पतन के कारण -
इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। अभी तक कोई पक्का साक्ष्य नहीं मिला है जो यह दर्शाता होगी इस सभ्यता का पतन कैसे हुआ। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-
प्रशासनिक शिथिलता - बस्ती का आकार सीमित होने के कारण और स्वच्छता में कमी के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
जलवायु परिवर्तन - वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ - मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध - इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी - मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन - वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ - मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध - इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी - मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
आओ फिर से याद करें —
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की नगर योजना की प्रमुख विशेषताएं क्या थी?
उत्तर – इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था। नगर के आवास क्षेत्र में सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अंदर प्रशासनिक, सार्वजनिक भवन और अन्नागार स्थित थे। इस सभ्यता की सड़कें नगरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर तथा गलियां औसतन 3 मीटर चौड़ी थी। सड़के कच्ची होती थी लेकिन साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़कों के किनारे कूड़ेदान भी रखे जाते थे। घरों की नालियां सड़क के किनारे बड़े नाले में गिरती थी। फिर नालों के माध्यम से पानी नगर से बाहर जाता था। नालिया पक्की ईंटों की बनाई जाती थी और इन्हें ऊपर से ढक दिया जाता था। इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां, रोशनदान, फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं।
प्रश्न 2 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के लोगों के सामाजिक और धार्मिक जीवन कैसा था?
उत्तर –
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का सामाजिक जीवन —
इस सभ्यता का समाज अनेक वर्गों में विभाजित रहा होगा। इस सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे। आवासीय क्षेत्र में व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, शिल्पी और मजदूर रहते थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में आवासीय क्षेत्र रक्षा-प्राचीर से भी घिरे हुए नहीं थे। किंतु कालीबंगा, लोथल, बनावली और धोलावीरा में किलेबंदी के साक्ष्य मिले हैं। इस सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन जौ, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, दूध, मांस ( मछली, भेड़, बकरी, सूअर का) था। उस समय पुरुष और स्त्रियां दोनों आभूषण पहना करते थे। आभूषणों में मुख्य रूप से हार, भुजबंद, कंगन, अंगूठी पहनी जाती थी। वे मुख्य रूप से हाथी दांत के कंधे और तांबे के शिशे का प्रयोग करते थे। स्त्रियां काजल, सूरमा, सिंदूर भी लगाती थी। शतरंज का खेल और नृत्य उनके मनोरंजन के साधन थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का धार्मिक जीवन —
इस सभ्यता के लोग मातृ शक्ति की पूजा करते थे। इस सभ्यता के लोग पशुपति शिव की उपासना भी किया करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर सींग वाले त्रिमुखी पुरुष को सिंहासन पर योग मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। जिसके दाहिने तरफ हाथी और बाघ, बाई तरफ गैंडा और भैंसा दिखाया गया है। सिहासन के नीचे दो हिरण खड़े दिखाए गए हैं। इस मूर्ति को पशुपति शिव की मूर्ति माना जाता है। इस सभ्यता के लोगों द्वारा शिवलिंग की पूजा भी की जाती थी। इस सभ्यता के लोग मुख्य रूप से एक सींग वाले पशु, बैल, सांप, पीपल की पूजा भी करते थे।
प्रश्न 3 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की आर्थिक संरचना कैसी थी?
उत्तर – सरस्वती-सिंधु सभ्यता आर्थिक रूप से सम्पन सभ्यता थी। यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहां लोग मुख्य रूप से गेहूं, जौ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों,कपास, तिल आदि की खेती करते थे। विशिष्ट प्रकार की फसलें, फसल बोने की विधि, कृषि के उपकरण, सिंचाई व्यवस्था आदि उस समय के कृषि विकास को दर्शाती है। इस सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाले जाते थे। इनका प्रयोग दूध, मांस, खाल और उन के लिए होता था। यह सभ्यता वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करती थी। स्थल मार्ग से व्यापार बैलगाड़ियों के द्वारा और समुद्री मार्ग में व्यापार नाव के द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 4 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की कलात्मक विशेषताएं क्या थी?
उत्तर – इस सभ्यता में धातु और मिट्टी की मूर्तियों का उल्लेख किया जाता है। इसके अतिरिक्त मोहरे, मनके और मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति और धातु की नर्तकी की मूर्ति भी मिली है। पुरुषों, स्त्रियों व पशु पक्षियों की भी मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। इस सभ्यता में मुहरें भी मिली हैं। जिन पर सूक्ष्म उपकरणों से पशु-पक्षियों, देवी देवताओं एवं लिपि को अंकित किया गया है। सेलखड़ी, गोमेद, शंख, हाथी दांत, सोने, चांदी और तांबे के आभूषण मिलते हैं।
आइए विचार करें —
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के विस्तार और कालक्रम के बारे में विचार करें।
उत्तर –
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का विस्तार —
यह सभ्यता पूर्व में आलमगीरपुर ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश ) से पश्चिम में सुत्कागेनडोर ( बलूचिस्तान ) तक और उत्तर में मांडा ( जम्मू ) से लेकर दक्षिण में दायमाबाद ( महाराष्ट्र ) तक था। इस सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर है। राखीगढ़ी, बनवाली ( हरियाणा ), मोहनजोदड़ो ( सिंधु ), हड़प्पा ( पंजाब ), धोलावीरा ( गुजरात ) और कालीबंगा ( राजस्थान ) महत्वपूर्ण नगर थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का कालक्रम —
कालक्रम की दृष्टि से सरस्वती-सिंधु सभ्यता को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है।
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की नगर योजना की प्रमुख विशेषताएं क्या थी?
उत्तर – इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था। नगर के आवास क्षेत्र में सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अंदर प्रशासनिक, सार्वजनिक भवन और अन्नागार स्थित थे। इस सभ्यता की सड़कें नगरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर तथा गलियां औसतन 3 मीटर चौड़ी थी। सड़के कच्ची होती थी लेकिन साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़कों के किनारे कूड़ेदान भी रखे जाते थे। घरों की नालियां सड़क के किनारे बड़े नाले में गिरती थी। फिर नालों के माध्यम से पानी नगर से बाहर जाता था। नालिया पक्की ईंटों की बनाई जाती थी और इन्हें ऊपर से ढक दिया जाता था। इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां, रोशनदान, फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं।
प्रश्न 2 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के लोगों के सामाजिक और धार्मिक जीवन कैसा था?
उत्तर –
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का सामाजिक जीवन —
इस सभ्यता का समाज अनेक वर्गों में विभाजित रहा होगा। इस सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे। आवासीय क्षेत्र में व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, शिल्पी और मजदूर रहते थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में आवासीय क्षेत्र रक्षा-प्राचीर से भी घिरे हुए नहीं थे। किंतु कालीबंगा, लोथल, बनावली और धोलावीरा में किलेबंदी के साक्ष्य मिले हैं। इस सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन जौ, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, दूध, मांस ( मछली, भेड़, बकरी, सूअर का) था। उस समय पुरुष और स्त्रियां दोनों आभूषण पहना करते थे। आभूषणों में मुख्य रूप से हार, भुजबंद, कंगन, अंगूठी पहनी जाती थी। वे मुख्य रूप से हाथी दांत के कंधे और तांबे के शिशे का प्रयोग करते थे। स्त्रियां काजल, सूरमा, सिंदूर भी लगाती थी। शतरंज का खेल और नृत्य उनके मनोरंजन के साधन थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का धार्मिक जीवन —
इस सभ्यता के लोग मातृ शक्ति की पूजा करते थे। इस सभ्यता के लोग पशुपति शिव की उपासना भी किया करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर सींग वाले त्रिमुखी पुरुष को सिंहासन पर योग मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। जिसके दाहिने तरफ हाथी और बाघ, बाई तरफ गैंडा और भैंसा दिखाया गया है। सिहासन के नीचे दो हिरण खड़े दिखाए गए हैं। इस मूर्ति को पशुपति शिव की मूर्ति माना जाता है। इस सभ्यता के लोगों द्वारा शिवलिंग की पूजा भी की जाती थी। इस सभ्यता के लोग मुख्य रूप से एक सींग वाले पशु, बैल, सांप, पीपल की पूजा भी करते थे।
प्रश्न 3 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की आर्थिक संरचना कैसी थी?
उत्तर – सरस्वती-सिंधु सभ्यता आर्थिक रूप से सम्पन सभ्यता थी। यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहां लोग मुख्य रूप से गेहूं, जौ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों,कपास, तिल आदि की खेती करते थे। विशिष्ट प्रकार की फसलें, फसल बोने की विधि, कृषि के उपकरण, सिंचाई व्यवस्था आदि उस समय के कृषि विकास को दर्शाती है। इस सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाले जाते थे। इनका प्रयोग दूध, मांस, खाल और उन के लिए होता था। यह सभ्यता वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करती थी। स्थल मार्ग से व्यापार बैलगाड़ियों के द्वारा और समुद्री मार्ग में व्यापार नाव के द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 4 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की कलात्मक विशेषताएं क्या थी?
उत्तर – इस सभ्यता में धातु और मिट्टी की मूर्तियों का उल्लेख किया जाता है। इसके अतिरिक्त मोहरे, मनके और मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति और धातु की नर्तकी की मूर्ति भी मिली है। पुरुषों, स्त्रियों व पशु पक्षियों की भी मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। इस सभ्यता में मुहरें भी मिली हैं। जिन पर सूक्ष्म उपकरणों से पशु-पक्षियों, देवी देवताओं एवं लिपि को अंकित किया गया है। सेलखड़ी, गोमेद, शंख, हाथी दांत, सोने, चांदी और तांबे के आभूषण मिलते हैं।
आइए विचार करें —
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के विस्तार और कालक्रम के बारे में विचार करें।
उत्तर –
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का विस्तार —
यह सभ्यता पूर्व में आलमगीरपुर ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश ) से पश्चिम में सुत्कागेनडोर ( बलूचिस्तान ) तक और उत्तर में मांडा ( जम्मू ) से लेकर दक्षिण में दायमाबाद ( महाराष्ट्र ) तक था। इस सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर है। राखीगढ़ी, बनवाली ( हरियाणा ), मोहनजोदड़ो ( सिंधु ), हड़प्पा ( पंजाब ), धोलावीरा ( गुजरात ) और कालीबंगा ( राजस्थान ) महत्वपूर्ण नगर थे।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता का कालक्रम —
कालक्रम की दृष्टि से सरस्वती-सिंधु सभ्यता को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है।
प्रारंभिक काल ( >4000-2600 ई.पू. )
नगरीय काल ( 2600-1900 ई.पू. )
उत्तर काल ( 1900-1300 ई.पू. )
इस सभ्यता की शुरुआत लगभग 7500- 7000 ई.पू. सरस्वती नदी के तट पर हुई। इस सभ्यता में 3200 ई.पू. में नगर योजना के लक्षण, लेखन कला मुहावरों का विकास और नापतोल की पद्धति का विकास हुआ। 1900 ई.पू. तक आते-आते नगरीय सभ्यता का बदलाव ग्रामीण संस्कृति में होना शुरू हो गया। 1300 ई.पू. इस सभ्यता का पतन हो गया।
प्रश्न 2 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के पतन के कारणों के बारे में विस्तार से चर्चा करे।
उत्तर – इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-प्रशासनिक शिथिलता – बस्ती का आकार सीमित होने के कारण और स्वच्छता में कमी के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
जलवायु परिवर्तन – वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ – मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध – इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी – मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
प्रश्न 3 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की विश्व को क्या-क्या देन है?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक हैं। इस सभ्यता से विश्व को बहुत कुछ सीखने को मिला। इस सभ्यता में नगर नियोजन व्यवस्था का बेहतरीन नमूना देखने को मिला। जिसमें नगर में सड़क व्यवस्था और पानी की जल निकासी की व्यवस्था महत्वपूर्ण थी। इस सभ्यता में कृषि और उसके औजारों के साक्ष्य भी प्राप्त हुए। इस सभ्यता से यह पता चला कि कौन-कौन से जानवर शुरुआत से ही पालतू थे। इसके अलावा आयात और निर्यात भी देखने को मिला।
आइए करके देखें —
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के व्यापारिक केंद्रों की सूची बनाइए।
उत्तर –
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की नगर योजना की प्रमुख विशेषताएं क्या थी?
उत्तर – इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था। नगर के आवास क्षेत्र में सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अंदर प्रशासनिक, सार्वजनिक भवन और अन्नागार स्थित थे। इस सभ्यता की सड़कें नगरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर तथा गलियां औसतन 3 मीटर चौड़ी थी। सड़के कच्ची होती थी लेकिन साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़कों के किनारे कूड़ेदान भी रखे जाते थे। घरों की नालियां सड़क के किनारे बड़े नाले में गिरती थी। फिर नालों के माध्यम से पानी नगर से बाहर जाता था। नालिया पक्की ईंटों की बनाई जाती थी और इन्हें ऊपर से ढक दिया जाता था। इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां, रोशनदान, फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं।
प्रश्न 2 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के पतन के कारणों के बारे में विस्तार से चर्चा करे।
उत्तर – इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-प्रशासनिक शिथिलता – बस्ती का आकार सीमित होने के कारण और स्वच्छता में कमी के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
जलवायु परिवर्तन – वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ – मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध – इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी – मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
प्रश्न 3 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता को आर्थिक रूप से संपन्न सभ्यता क्यों कहा गया है?
उत्तर – सरस्वती-सिंधु सभ्यता आर्थिक रूप से सम्पन सभ्यता थी। यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहां लोग मुख्य रूप से गेहूं, जौ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों,कपास, तिल आदि की खेती करते थे। विशिष्ट प्रकार की फसलें, फसल बोने की विधि, कृषि के उपकरण, सिंचाई व्यवस्था आदि उस समय के कृषि विकास को दर्शाती है। इस सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाले जाते थे। इनका प्रयोग दूध, मांस, खाल और उन के लिए होता था। यह सभ्यता वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करती थी। स्थल मार्ग से व्यापार बैल गाड़ियों के द्वारा और समुद्री मार्ग में व्यापार नाव के द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 4 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के व्यापारिक केंद्रों की सूची बनाइए।
उत्तर –
प्रश्न 14 – सरस्वती सिंधु सभ्यता की नगर योजना की कोई दो विशेषताएं लिखिए। ( HBSE 2022 )
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता की नगर योजना की कोई दो विशेषताएं –इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था।
इस सभ्यता की सड़कें नगरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी।
प्रश्न 15 – सिंधु सभ्यता की एक बंदरगाह का नाम बताओ। ( HBSE 2022 )
उत्तर – लोथल
प्रश्न 16 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के विभिन्न प्रकार के भवनों पर नोट लिखो। ( HBSE 2022 )
उत्तर – इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां रोशनदान फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं। सामुदायिक भवनों में सभा भवन, अन्नागार और स्नानागार मिलते हैं। भवनों को बनाने में 1:2:3 और 1:2:4 अनुपात की ईंटों का उपयोग किया गया हैं।
प्रश्न 17 – सरस्वती- सिंधु सभ्यता के लोगों का सामाजिक और धार्मिक जीवन कैसा था ? ( HBSE 2022 )
उत्तर –
नगरीय काल ( 2600-1900 ई.पू. )
उत्तर काल ( 1900-1300 ई.पू. )
इस सभ्यता की शुरुआत लगभग 7500- 7000 ई.पू. सरस्वती नदी के तट पर हुई। इस सभ्यता में 3200 ई.पू. में नगर योजना के लक्षण, लेखन कला मुहावरों का विकास और नापतोल की पद्धति का विकास हुआ। 1900 ई.पू. तक आते-आते नगरीय सभ्यता का बदलाव ग्रामीण संस्कृति में होना शुरू हो गया। 1300 ई.पू. इस सभ्यता का पतन हो गया।
प्रश्न 2 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के पतन के कारणों के बारे में विस्तार से चर्चा करे।
उत्तर – इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-प्रशासनिक शिथिलता – बस्ती का आकार सीमित होने के कारण और स्वच्छता में कमी के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
जलवायु परिवर्तन – वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ – मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध – इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी – मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
प्रश्न 3 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की विश्व को क्या-क्या देन है?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक हैं। इस सभ्यता से विश्व को बहुत कुछ सीखने को मिला। इस सभ्यता में नगर नियोजन व्यवस्था का बेहतरीन नमूना देखने को मिला। जिसमें नगर में सड़क व्यवस्था और पानी की जल निकासी की व्यवस्था महत्वपूर्ण थी। इस सभ्यता में कृषि और उसके औजारों के साक्ष्य भी प्राप्त हुए। इस सभ्यता से यह पता चला कि कौन-कौन से जानवर शुरुआत से ही पालतू थे। इसके अलावा आयात और निर्यात भी देखने को मिला।
आइए करके देखें —
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के व्यापारिक केंद्रों की सूची बनाइए।
उत्तर –
हड़प्पा
मोहनजोदड़ो
लोथल
कालीबंगा
चान्हूदड़ो
प्रश्न 2 – हरियाणा में सरस्वती-सिंधु सभ्यता के स्थलों की सूची बनाइए।
उत्तर –
मोहनजोदड़ो
लोथल
कालीबंगा
चान्हूदड़ो
प्रश्न 2 – हरियाणा में सरस्वती-सिंधु सभ्यता के स्थलों की सूची बनाइए।
उत्तर –
मिताथल
बनावली
राखीगढ़ी
सीसवाल
फरमाना
कुणाल
बनावली
राखीगढ़ी
सीसवाल
फरमाना
कुणाल
Important Question Answer
प्रश्न 1 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता की नगर योजना की प्रमुख विशेषताएं क्या थी?
उत्तर – इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था। नगर के आवास क्षेत्र में सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अंदर प्रशासनिक, सार्वजनिक भवन और अन्नागार स्थित थे। इस सभ्यता की सड़कें नगरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर तथा गलियां औसतन 3 मीटर चौड़ी थी। सड़के कच्ची होती थी लेकिन साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़कों के किनारे कूड़ेदान भी रखे जाते थे। घरों की नालियां सड़क के किनारे बड़े नाले में गिरती थी। फिर नालों के माध्यम से पानी नगर से बाहर जाता था। नालिया पक्की ईंटों की बनाई जाती थी और इन्हें ऊपर से ढक दिया जाता था। इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां, रोशनदान, फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं।
प्रश्न 2 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के पतन के कारणों के बारे में विस्तार से चर्चा करे।
उत्तर – इस सभ्यता के पतन के एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदाई रहे होंगे। नीचे पतन के कुछ प्रमुख कारण लिखे गए हैं:-प्रशासनिक शिथिलता – बस्ती का आकार सीमित होने के कारण और स्वच्छता में कमी के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
जलवायु परिवर्तन – वर्षा कम होने के कारण तथा सरस्वती नदी का पानी सूखने की वजह से उनका पतन हुआ।
बाढ़ – मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन में बाढ़ के साक्ष्य भी मिले हैं। यह भी पतन का कारण हो सकता है।
विदेशी व्यापार में गतिरोध – इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आने के कारण आर्थिक ढांचा कमजोर हो गया। जिसके कारण बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की मांग बढ़ी और लोगों के जीवन स्तर में बहुत भारी गिरावट आई।
महामारी – मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकाल के अध्ययन से पता चला कि उनमें से 41 की मौत मलेरिया से हुई थी। यह भी इस सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है।
प्रश्न 3 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता को आर्थिक रूप से संपन्न सभ्यता क्यों कहा गया है?
उत्तर – सरस्वती-सिंधु सभ्यता आर्थिक रूप से सम्पन सभ्यता थी। यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहां लोग मुख्य रूप से गेहूं, जौ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों,कपास, तिल आदि की खेती करते थे। विशिष्ट प्रकार की फसलें, फसल बोने की विधि, कृषि के उपकरण, सिंचाई व्यवस्था आदि उस समय के कृषि विकास को दर्शाती है। इस सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाले जाते थे। इनका प्रयोग दूध, मांस, खाल और उन के लिए होता था। यह सभ्यता वस्तुओं का आयात और निर्यात भी करती थी। स्थल मार्ग से व्यापार बैल गाड़ियों के द्वारा और समुद्री मार्ग में व्यापार नाव के द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 4 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के व्यापारिक केंद्रों की सूची बनाइए।
उत्तर –
हड़प्पा
मोहनजोदड़ो
लोथल
कालीबंगा
चान्हूदड़ो
प्रश्न 5 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के विस्तार कहां तक फैला है?
उत्तर – यह सभ्यता पूर्व में आलमगीरपुर ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश ) से पश्चिम में सुत्कागेनडोर ( बलूचिस्तान ) तक और उत्तर में मांडा ( जम्मू ) से लेकर दक्षिण में दायमाबाद ( महाराष्ट्र ) तक था। इस सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर है।
प्रश्न 6 – सरस्वती सिंधु सभ्यता में भवनों की संरचना कैसी होती थी?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में आवासीय और सामुदायिक भवन मिलते हैं। आवासीय भवनों में तीन चार कमरे रसोईघर स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। सामुदायिक भवनों में सभा भवन अन्नागार और स्नानागार मिलते हैं।
प्रश्न 7 – मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति का वर्णन करें।
उत्तर – मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति 19 सेंटीमीटर लंबी है, जो तिपतिया अलंकरण से युक्त शाल ओढ़े हुए हैं। इसकी दाढ़ी विशेष रूप से संवरी हुई है और केस पीछे की ओर संवार कर एक फीते से बंधे हुए हैं। दाहिने हाथ पर एक भुजबंद बंधा हुआ है।
प्रश्न 8 – मोहनजोदड़ो से मिली पशु और पक्षियों की मूर्तियों का वर्णन करें।
उत्तर – मोहनजोदड़ो से मिली पशु और पक्षियों की मूर्तियों में बैल, भेड़, बकरी, कुत्ता, हाथी, सूअर, मोर, बत्तख, तोता और कबूतर की मूर्तियां पाई गई हैं।
प्रश्न 9 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के प्रमुख वर्ग कौन-कौन से थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे।
प्रश्न 10 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग किस प्रकार का भोजन करते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे। इनका मुख्य भोजन जौ, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, दूध और मांस ( मछली, भेड़, बकरी, सूअर आदि ) था।
प्रश्न 11 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग किन जानवरों को पालते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाला जाता था। इस सभ्यता के लोगों ने घोड़े और ऊंट को भी पालतू बनाया। इनके अलावा जंगली सूअर, चिंकारा, हाथी, हिरण और नीलगाय पालने के प्रमाण भी मिले हैं।
प्रश्न 12 – मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति शिव की मूर्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर – मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर पर सींग वाले त्रिमुखी पुरुष को सिंहासन पर योग मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। जिसके दाहिनी तरफ हाथी और बाघ, बाई तरफ गैंडा और भैंसा दिखाया गया है। सिहासन के नीचे दो हिरण खड़े दिखलाए गए हैं। इस मूर्ति को पशुपति शिव की मूर्ति माना जाता है।
प्रश्न 13 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के दो प्रमुख नगरों के नाम लिखिए। ( HBSE 2022 )
उत्तर – हड़प्पा, मोहनजोदड़ो
मोहनजोदड़ो
लोथल
कालीबंगा
चान्हूदड़ो
प्रश्न 5 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के विस्तार कहां तक फैला है?
उत्तर – यह सभ्यता पूर्व में आलमगीरपुर ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश ) से पश्चिम में सुत्कागेनडोर ( बलूचिस्तान ) तक और उत्तर में मांडा ( जम्मू ) से लेकर दक्षिण में दायमाबाद ( महाराष्ट्र ) तक था। इस सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर है।
प्रश्न 6 – सरस्वती सिंधु सभ्यता में भवनों की संरचना कैसी होती थी?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में आवासीय और सामुदायिक भवन मिलते हैं। आवासीय भवनों में तीन चार कमरे रसोईघर स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। सामुदायिक भवनों में सभा भवन अन्नागार और स्नानागार मिलते हैं।
प्रश्न 7 – मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति का वर्णन करें।
उत्तर – मोहनजोदड़ो से प्राप्त खंडित पुरुष की मूर्ति 19 सेंटीमीटर लंबी है, जो तिपतिया अलंकरण से युक्त शाल ओढ़े हुए हैं। इसकी दाढ़ी विशेष रूप से संवरी हुई है और केस पीछे की ओर संवार कर एक फीते से बंधे हुए हैं। दाहिने हाथ पर एक भुजबंद बंधा हुआ है।
प्रश्न 8 – मोहनजोदड़ो से मिली पशु और पक्षियों की मूर्तियों का वर्णन करें।
उत्तर – मोहनजोदड़ो से मिली पशु और पक्षियों की मूर्तियों में बैल, भेड़, बकरी, कुत्ता, हाथी, सूअर, मोर, बत्तख, तोता और कबूतर की मूर्तियां पाई गई हैं।
प्रश्न 9 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के प्रमुख वर्ग कौन-कौन से थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे।
प्रश्न 10 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग किस प्रकार का भोजन करते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे। इनका मुख्य भोजन जौ, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, दूध और मांस ( मछली, भेड़, बकरी, सूअर आदि ) था।
प्रश्न 11 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के लोग किन जानवरों को पालते थे?
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता में बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे और सूअर को प्रमुख रूप से पाला जाता था। इस सभ्यता के लोगों ने घोड़े और ऊंट को भी पालतू बनाया। इनके अलावा जंगली सूअर, चिंकारा, हाथी, हिरण और नीलगाय पालने के प्रमाण भी मिले हैं।
प्रश्न 12 – मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति शिव की मूर्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर – मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर पर सींग वाले त्रिमुखी पुरुष को सिंहासन पर योग मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। जिसके दाहिनी तरफ हाथी और बाघ, बाई तरफ गैंडा और भैंसा दिखाया गया है। सिहासन के नीचे दो हिरण खड़े दिखलाए गए हैं। इस मूर्ति को पशुपति शिव की मूर्ति माना जाता है।
प्रश्न 13 – सरस्वती सिंधु सभ्यता के दो प्रमुख नगरों के नाम लिखिए। ( HBSE 2022 )
उत्तर – हड़प्पा, मोहनजोदड़ो
प्रश्न 14 – सरस्वती सिंधु सभ्यता की नगर योजना की कोई दो विशेषताएं लिखिए। ( HBSE 2022 )
उत्तर – सरस्वती सिंधु सभ्यता की नगर योजना की कोई दो विशेषताएं –इस सभ्यता के नगरों में प्रायः पूर्व और पश्चिम दिशा में दो टीले मिलते हैं। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र और पश्चिम टीले पर दुर्ग स्थित होता था।
इस सभ्यता की सड़कें नगरों को पाँच- छ: खंडों में विभाजित करती थी।
प्रश्न 15 – सिंधु सभ्यता की एक बंदरगाह का नाम बताओ। ( HBSE 2022 )
उत्तर – लोथल
प्रश्न 16 – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के विभिन्न प्रकार के भवनों पर नोट लिखो। ( HBSE 2022 )
उत्तर – इस सभ्यता की आवासीय भवनों में तीन-चार कमरे, रसोईघर, स्नानघर और भवन के बीच में आंगन होता था। संपन्न लोगों के घरों में कुआं और शौचालय भी होते थे। मकानों में खिड़कियां रोशनदान फर्श और दीवारों पर पलस्तर के सबूत भी मिले हैं। सामुदायिक भवनों में सभा भवन, अन्नागार और स्नानागार मिलते हैं। भवनों को बनाने में 1:2:3 और 1:2:4 अनुपात की ईंटों का उपयोग किया गया हैं।
प्रश्न 17 – सरस्वती- सिंधु सभ्यता के लोगों का सामाजिक और धार्मिक जीवन कैसा था ? ( HBSE 2022 )
उत्तर –
सरस्वती- सिंधु सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन –
नगरों को दुर्ग क्षेत्र और आवास क्षेत्र में विभाजित किया जाता था। नगर दुर्गों में संपन्न व्यक्ति या शासक वर्ग निवास करता था।
आवासीय क्षेत्र में व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, शिल्पी और मजदूर रहते थे।
इस सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे।
उस समय पुरुष और स्त्रियां दोनों आभूषण पहना करते थे। आभूषणों में मुख्य रूप से हार, भुजबंद, कंगन, अंगूठी पहनी जाती थी।
सरस्वती- सिंधु सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन – इस सभ्यता के लोग मातृ शक्ति, पशुपति शिव, शिवलिंग, एक सींग वाले पशु, बैल, सांप, पीपल की पूजा करते थे।
इस सभ्यता में अंतिम संस्कार की तीन विधियां थी।पूर्ण समाधिकरण
आंशिक समाधिकरण
दाह संस्कारसमाधि क्षेत्र नगरों से बाहर होते थे। शवों का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण दिशा की ओर होते थे। कंकालों के साथ मिट्टी के बर्तन, आभूषण, उपकरण आदि रखे जाते थे।
प्रश्न 18 – लोथल किस राज्य में है? ( HBSE 2022 )
उत्तर – गुजरात
प्रश्न 19- कालीबंगा किस राज्य में है? ( HBSE 2022 )
उत्तर – राजस्थान
प्रश्न 20 – सरस्वती सिंधु सभ्यता का पतन कब हुआ? ( HBSE 2022 )
उत्तर – 1300 ई.पू.
प्रश्न 21 – सरस्वती सिंधु सभ्यता की मुख्य सड़क व गलिया कितनी चौडी थी? – ( HBSE 2022 )
उत्तर – सडके 9.15 मीटर व गलिया 3 मीटर
आवासीय क्षेत्र में व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, शिल्पी और मजदूर रहते थे।
इस सभ्यता के समाज में कृषक, कुंभकार, बढ़ई, नाविक, श्रमिक, आभूषण बनाने वाले शिल्पी और जुलाहे महत्वपूर्ण वर्ग थे।
उस समय पुरुष और स्त्रियां दोनों आभूषण पहना करते थे। आभूषणों में मुख्य रूप से हार, भुजबंद, कंगन, अंगूठी पहनी जाती थी।
सरस्वती- सिंधु सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन – इस सभ्यता के लोग मातृ शक्ति, पशुपति शिव, शिवलिंग, एक सींग वाले पशु, बैल, सांप, पीपल की पूजा करते थे।
इस सभ्यता में अंतिम संस्कार की तीन विधियां थी।पूर्ण समाधिकरण
आंशिक समाधिकरण
दाह संस्कारसमाधि क्षेत्र नगरों से बाहर होते थे। शवों का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण दिशा की ओर होते थे। कंकालों के साथ मिट्टी के बर्तन, आभूषण, उपकरण आदि रखे जाते थे।
प्रश्न 18 – लोथल किस राज्य में है? ( HBSE 2022 )
उत्तर – गुजरात
प्रश्न 19- कालीबंगा किस राज्य में है? ( HBSE 2022 )
उत्तर – राजस्थान
प्रश्न 20 – सरस्वती सिंधु सभ्यता का पतन कब हुआ? ( HBSE 2022 )
उत्तर – 1300 ई.पू.
प्रश्न 21 – सरस्वती सिंधु सभ्यता की मुख्य सड़क व गलिया कितनी चौडी थी? – ( HBSE 2022 )
उत्तर – सडके 9.15 मीटर व गलिया 3 मीटर
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